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Wednesday, November 25, 2015

Baba Napaur Hai (Kahani)


मौहम्‍मद वसीम देहलवी

बाबा नपौर है!
वो फ़ुटोवर ब्रिज से सड़क पार कर रही थी कि दो-चार मनचलों ने फ़ब्‍ती कसी, ''बाबा नपौर है!'' । पता नहीं यह कौन सी भाषा थी? लेकिन इन शब्‍दों में एक चुभन अवश्‍य महसूस हुई थी। न कि सिर्फ़ उसे बल्कि मुझे भी इन शब्‍दों को सुनकर काफी तकलीफ़ हुई थी। उसने मनचलों की बात को कोई तरजीह न देते हुए अपना रास्‍ता लिया। मैं हालांकि काफ़ी तैश में आ गया था लेकिन किसी पचड़े में न पड़ते हुए अपने ग़ुस्‍से को क़ाबू किया और उसके पीछे-पीछे ही सीढिय़ॉं उतर कर बस स्‍टैण्‍ड पर आ गया।

    बस स्‍टैण्‍ड पर खड़े हुए मैंने उसे पहचान लिया, ''अरे यह तो कम्‍मू कुम्‍हार की बेटी अनु है।'' मैंने मन ही मन कहा। उसके बाद मेरी नज़रों के सामने पिछली सारी घटनाएं किसी चलचित्र की भांति चलने लगीं। कम्‍मू कुम्‍हार की मन्दिर से सटी हुई मिट्टी के बर्तनों की दुकान हुआ करती थी। काम तो उसका ठीक-ठाक ही था लेकिन ख़र्च बहुत ज़्यादा था। छोट-बड़े ग्‍यारह बच्‍चे जिसमें दो बेटियॉं शादी योग्‍य हो गई थीं। जितना कमाता था उसमें से बचना तो दूर की बात ख़र्च भी पूरा नहीं होता था। हर समय बेचारा तंगी से ही घिरा रहता था। ऐसे में बेटियों की शादी किस प्रकार करता? फिर भी बेचारे ने बड़ी बेटी अनु के लिए रिश्‍ता ढूंढा और उधार-क़र्ज़ करके शादी की तारीख़ तय कर दी थी।
    निश्चित तिथि पर बारात भी आ गई, सब कुछ सही हो रहा था। लेकिन अन्तिम समय में एक लड़के ने आकर हंगामा खड़ा कर दिया। ''यह लड़की तो मेरी पत्‍नी है, इसने मन्दिर में मेरे साथ सात फैरे लिये हैं। यह दोबारा किसी और के साथ कैसे शादी कर सकती है? '' उस लड़के ने बड़े आत्‍मविश्‍वास के साथ चिल्‍लाकर कहा। उसने शादी की एक तस्‍वीर भी लोगों को दिखाई।
''क्या यह सच कह रहा है?" कम्‍मू ने अपनी बेटी अनु से गिड़गिड़ाते हुए पूछा।
''मैं तो इस लड़के को जानती तक नहीं कि यह कौन है? फैरे लेना तो बहुत दूर की बात है।'' अनु ने रोते-सुबकते सफ़ाई दी।

    हालांकि कम्‍मू को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था लेकिन लोगों की ज़ुबान वह नहीं रोक सकता था। वह लड़के वालों के सामने बहुत गिड़गिड़ाया उनसे मिन्‍नतें कीं कि यह सब झूठ है। लेकिन सब बेकार। लड़के वालों ने उसकी एक न सुनी और बारात वापस ले गए। किसी ने भी मासूम अनु का विश्‍वास नहीं किया। किसी ने भी उसकी बेगुनाही को देखने की कोशिश नहीं की। वैसे कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस बात में यक़ीन नहीं करते थे लेकिन उनकी संख्‍या विश्‍वास करने वालों से बहुत कम थी। यह बात पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई थी। कम्‍मू और उसकी बेटी की काफ़ी बदनामी हो गई थी।

    जितना मैं कम्‍मू और उसकी बेटी को जानता था, मेरे लिए इस बात पर यक़ीन करना बहुत मुश्किल था। मैंने मौक़ा पा कर कम्‍मू से एकान्‍त में पूछा कि मामला क्‍या है? यह सब कैसे हो गया? उसने काफ़ी ज़ोर देने पर बताया कि शादी से ठीक एक दिन पहले लड़के के बाप का फ़ोन आया था और उसने कहा था कि लड़का तो गाड़ी की जि़द कर रहा है। मैंने उससे कहा कि मेरे लिए तो गाड़ी देना सम्‍भव नहीं होगा। तो इस पर उसने धमकी भरे लहजे में उत्‍तर दिया, ''तो फिर मेरे लिए भी बारात लाना सम्‍भव नहीं होगा।''

    ''दरअसल, यह सब खेल लड़के वालों द्वारा रची गई साजि़श है। क्‍योंकि उन्‍हें कोई हमसे बेहतर रिश्‍ता मिल गया है। यह बात मुझे उनके किसी रिश्‍तेदार द्वारा पता चली थी। अगर वो गाड़ी की मॉंग करके बारात लौटाते तो दहेज कानून में फंस सकते थे। इस कारण उन्‍होंने यह सब ड्रामा रचा है। अब वो लड़के की शादी नई जगह (जो उन्‍हें मिल चुकी है) आराम से कर सकते हैं।'' कम्‍मू ने ख़ुलासा किया। मैं स्‍वयं कम्‍मू और उसकी बेटी की सहायता करना चाहता था। लेकिन अगले ही दिन न तो कम्‍मू का कहीं पता था न उसके परिवार का और न ही उसकी दुकान का कुछ अता-पता था। बदनामी के डर से कम्‍मू ने शायद कहीं पलायन कर लिया था। आज इतने वर्षों बाद मैंने उसकी बेटी अनु को देखा था।



''मैं आपको पहचानूंगी कैसे?" अनु बस स्‍टैण्‍ड पर खड़़े हुए किसी से बात कर रही थी। दूसरी ओर वाले व्‍यक्ति ने कुछ कहा होगा उस पर वह बोली, ''अच्‍छा आपने गोगल लगाई हुई है, मैं पीले सूट में हूँ।''

    एका-एक एक मोटर साईकिल आकर रुकी और अनु उस पर सवार युवक के पीछे जाकर बैठ गई। उस युवक ने आंखों पर काले रंग का धूप का चश्‍मा लगा रखा था। वह लगभग 22-23 साल का काफ़ी अच्‍छे घराने का लड़का मालूम होता था। मोटर साईकिल पर बैठते हुए अनु ने अपने चेहरे को दुपट्टे से इस प्रकार ढॉंप लिया जैसे मुस्लिम औरतें पर्दा करने के लिये स्‍वयं को ढॉंपती हैं। मोटर साइकिल ने अपना रास्‍ता लिया कि तभी मेरी भी बस आ गई। बस में चढ़ते हुए मुझे ''बाबा नपौर है!'' का अर्थ समझ में आ चुका था। इस बात का मुझे दुख था कि एक सभ्‍य पढ़ी-लि‍खी और अच्‍छे संस्‍कारों वाली लड़की समय की मार, अपनी ग़रीबी और मॉं-बाप की लाचारी के चलते एक ग़लत राह पर चल पड़ी थी। पता नहीं इसके लिए कौन जि़म्‍मेदार था? कम्‍मू जिसने बच्‍चों की एक फ़ौज खड़ी कर रखी थी, लड़के का बाप जो अनु की बारात वापस ले गया था, वह लड़का जिससे अनु की शादी हो रही थी या स्‍वयं अनु ..... ?

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Friday, November 6, 2015

Jazbat e Waseem Published in Aapsi Sahayog

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Samaj Mein Meri Bhoomika

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