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Monday, September 25, 2017

इंसान (कविता)

इंसान

क्‍या से क्‍या बन गया है इंसान
सच का सौदा करते-करते गंवा बैठा है ईमान

पथ-पथरीला और मुश्किल तो है बहुत मगर
पग रहें सच पर तो नहीं बनता है हैवान

धर्म-उपदेश देता, क्षमा देवी को करके
स्‍वयं को दर्शाता है गुरू और भगवान

बुद्धम संरणं गच्‍छामि कहे, उपदेश दे बुद्ध का
और मानवता को कुचल कर कहता है, ‘हे भगवान

अमन-शांति के तमग़े भी मिलते हैं उसको ही
मासूमों का जो क़त्‍ल करे फिर कहलाता है इंसान

निस्‍संदेह नारी है देवी,  है मान-सम्‍मान की हक़दार

रौंदकर उसकी इज्‍़ज़त को, स्‍वयं बनता है भगवान

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