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Friday, February 15, 2019

सौहार्द बनाये रखें


दिनांक 16 फ़रवरी, 2019
मेरे अज़ीज़ हम व‍तनों आप सभी को मेरा मुअद्दिबाना सलाम,
      आज हम एक बहुत बुरी घड़ी से गुज़र रहे हैं, जी हां मैं पुलवामा मे हुए हमले की बात कर रहा हूँ। यह हमला केवल हमारे जवानों के क़त्‍ल करने के लिये नहीं है बल्कि यह हमला हमारी गंगा-जमनी तहज़ीब को क़त्‍ल करने के लिये है। यह हमला हमारे भाईचारे को ख़त्‍म करने के लिये है। यह हमला हमारे मुल्‍क के लिये एक बहुत बड़ी साजि़श है। इस नाज़ुक घड़ी में हमें बहुत गंभीरता से और सावधानी से रहने की आवश्‍यकता है। इस हमले का असर हमारे आपसी संबंधों और अन्‍दरूनी मुल्‍क पर नहीं पड़ना चाहिए वर्ना दुश्‍मन ख़ुश हो जायेंगे कि एक तीर से दो शिकार कर लिये हैं।    

      हमें इस समय आपसी भेदभाव भुला कर देश को मजबूत करने में सहयोग देने की आवश्‍यकता है। सियासी जमातों और सियासत दानों को भी आपसी भेदभाव भुलाकर न कि इस मुद्दे को भुनाकर देश हित में काम करना चाहिए ताकि भारत की इन्‍द्रधनुषी छटा बनी रहे।
      
        जय हिन्‍द, जय भारत
आपकी दुआओं का तालिब
आपका भाई

मौहम्‍मद वसीम (वसीम देहलवी)
e-Mail : mwsd75@gmail.com


Monday, February 11, 2019

दिल्‍ली लोकपाल बिल और आप



दिल्‍ली लोकपाल बिल और आप

    लोकपाल बिल एक ऐसा मुद्दा है जिसने न सिर्फ़ दिल्‍ली की बल्कि देश की सियासत को हिला कर या यूं कहें कि बदल कर रख दिया है। इस मुद्दे ने न केवल पन्‍द्रह साल पुरानी शीला सरकार को ज़बरदस्‍त शिकस्‍त दी बल्कि दस वर्षों से सत्‍ता पर क़ाबिज़ केन्‍द्र की डॉ0 मनमोहन सिंह सरकार को भी सत्‍ता से बाहर का रास्‍ता दिखाया। उसी डॉ0 मनमोहन सिंह की सरकार को जिसने विश्‍व आर्थिक मंदी का असर भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर नहीं होने दिया था। जिसके एवज़ में जनता ने उन्‍हें दोबारा चुन कर सत्‍ता में भेजा था। लेकिन इस मुद्दे ने उनकी सरकार की भी चूलें हिला कर रख दीं थी। केवल डॉ0 मनमोहन सिंह ही एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो नेहरू गांधी परिवार के न होते हुए भी लगातार दो बार पूरी अवधि के लिये देश के प्रधानमंत्री बने हैं।  
    अन्‍ना हज़ारे का आंदोलन जब शुरू हुआ था उस समय सोनिया गांधी और राहुल गांधी की लोकप्रियता चरम पर थी लेकिन भ्रष्‍टाचार- महंगाई विरोधी आंदोलन और लोकपाल की आंधी ने कांग्रेस पार्टी को उड़ाकर फैंक दिया। इस बात का फायदा उठाते हुए श्री अरविन्‍द केजरीवाल दिल्‍ली की सत्‍ता तक पहुंचने में सफल हुए। लेकिन अपनी कामयाबी से अति विश्‍वस्‍त केजरीवाल ने अपनी अल्‍पमत सरकार को बहुमत सरकार में बदलने के लिये 14 फरवरी, 2014 को लोकपाल बिल को मुद्दा बनाते हुए अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। और आरोप मढ़ दिया  कांग्रेस और भाजपा दोनों पर कि ये दोनों पार्टियां वैलेंटाइन डे पर एक हो गई हैं। और हम इस प्रकार लोकपाल बिल को अमली जामा पहनाने में असमर्थ हैं। इस प्रकार इस मुद्दे के कारण दिल्‍ली की जनता पर ज़बरदस्‍ती एक मध्‍यावधि चुनाव थौंप दिया गया।
    लेकिन आज दिल्‍ली सरकार का कार्यकाल जब समाप्‍त होने को है कहां है लोकपाल’? जब आप गहराई में जाएंगे तो पता लगेगा कि लोकपाल बिल दिल्‍ली के हरदिल अज़ीज़ मुख्‍यमंत्री श्री अ‍रविन्‍द केजरीवाल के कानून मंत्री के पास लंबित है। कोई पूछे इन लोगों से कि जिस मुद्दे के लिये आपने दिल्‍ली की जनता पर एक मध्‍यावधि चुनाव थौंपा था उसे आपने अब तक लागू क्‍यों नहीं किया। यदि इसके पीछे भी कोई कारण है तो उससे जनता को आज तक अवगत क्‍यों नहीं कराया गया।
v कहां है मुफ़्त वाईफाई?
v कहां हैं नये कॉलेज?
v कितने नये विद्यालयों का निर्माण हुआ?
v कितने नये अस्‍पतालों का निर्माण हुआ?
v सरकारी अस्‍पतालों में मिलने वाली कुछ दवाओं को वर्गीकृत करके क्‍यों सप्‍लाई से हटाया गया?
v मौहल्‍ला क्‍लीनिक में कितने क्‍लीनिक ऐसे हैं जो आज तक परिचालित नहीं हो सके हैं?
v उनमें डाक्‍टर कहां से बुलाकर तैनात किये गये हैं?
v क्‍या कुछ नये डाक्‍टर नियुक्‍त किये गये हैं?
v क्‍या बिजली का बिल आधा किया गया है?
v 70 विधान सभा क्षेत्रों में कितने विकास कार्य शुरू हुए और कब तिथि के साथ बतायें।
v कितने अनियमित कर्मचारियों को नियमित किया गया है?
v विदेश में प्रशिक्षण को भेजे गये अध्‍यापकों की नियुक्‍ती कब हुई?

    चुनाव जीतने से पहले आपका यह नारा था कि हम बिजली का बिल आधा करेंगे और जीतने के बाद बिजली की खपत करने की एक सीमा तय कर दी गई कि यदि आप इतने यूनिट बिजली जलाते हैं तो आपको सब्‍सिडी मिलेगी अन्‍यथा नहीं। अब जिन लोगों ने उस निर्धारित सीमा से 1 यूनिट भी उूपर बिजली जलाई है तो उनके लिये तो कोई सब्‍सिडी नहीं है। बल्कि उनका तो बिल उल्‍टा बढ़ गया है।
    मेरा तात्‍पर्य किसी सियासी जमात की हिमायत या मुख़ालिफ़त करना नहीं है सिर्फ़ जनता को जागरुक करना है कि इतनी अंधभक्ति उचित नहीं है। इतिहास में कभी भी किसी राज्‍य के मुख्‍यमंत्री ने अपने ही देश के प्रधानमंत्री पर ऐसे कीचड़ नहीं उछाला होगा जिस प्रकार आदरणीय केजरीवाल साहब ने किया है। अपने वैचारिक मतभेद होना स्‍वाभाविक है लेकिन पर्सनल अटैक करना एक स्‍वस्‍थ राजनैतिक परम्‍परा  के विरुद्ध है।
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