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Thursday, October 27, 2016

Sandesh2Soldiers Campaign at New Delhi to wish all our soldiers Happy Diwali



Friday, October 21, 2016

क़लम की यादें (परमाणु क़रार - क्या खोया क्या पाया?)



क़लम की यादें (अन्ना आंदोलन और विपक्ष)


क़लम की यादें (इज्तेमाई निकाह और दिखावा)



क़लम की यादें (बाबरी मस्जिद : समस्या और समाधान)



Sunday, October 9, 2016

दिनांक 10 अक्‍टूबर, 2016
मेरे अज़ीज़ हम व‍तनों आप सभी को मेरा मुअद्दिबाना सलाम,
     आप सभी को दशहरे की बहुत-2 बधाई। मैं बड़े फ़ख्र के साथ एक बात कहना चाहूँगा कि हमारे मुल्‍क में एक तरफ़ तो रामलीलाओं की धूम है तो वहीं दूसरी ओर मजालिसे अज़ादारी मुनअकि़द हो रही हैं। दशहरा बुराई पर अच्‍छाई की जीत की याद दिलाता है तो वहीं दूसरी तरफ़ मुहर्रम का दिन भी हमें हक़ की बातिल (बुराई पर अच्‍छाई) पर जीत की याद दिलाता है। यह कोई त्‍यौहार नहीं है लेकिन इस दिन हज़रते इमाम हुसैन (रजि0अ0) की शहादत ने हक़ को जि़न्‍दा किया था।

     यह एक इत्तिफा़क़ है कि ये दोनों ऐतिहासिक दिन एक साथ पड़ रहे हैं। जहां एक तरफ शहादत का बयान, मुहर्रम की अज़ादारी और शामे ग़रीबा तो वहीं दूसरी तरफ़ रावण दहन एक साथ एक दिन के आगे-पीछे हो रहा है। एक तरफ 10 मुहर्रम का फ़ाक़ा है तो दूसरी तरफ नवरात्रों के व्रत, ऐसा नज़ारा सिर्फ हमारे मुल्‍क में ही मुमकिन है। दुनिया के किसी और मुल्‍क में आप इस तरह के नज़ारे नहीं देख सकते हैं।

     हम जिस समाज में रहते हैं यह उसका Advantage है कि हम इस तरह की इन्‍द्रधनुषी छटा का आनंद ले सकते हैं और Disadvantage यह है कि हम आपस में लड़ते रहते हैं। लेकिन एक बात में वाज़ेह कर देना चाहूँगा कि हम चाहे जितना लड़ते रहें लेकिन दुनिया की कोई ताक़त हमें अलग नहीं कर सकती है। क्‍योंकि भाइयों के बीच झगड़ा तो हो सकता है लेकिन एक भाई के बुरे वक्‍़त में दूसरा भाई हमेंशा खड़ा होता है ये हमारे संस्‍कार हैं।

     अल्‍लाह हाफि़ज़
आपकी दुआओं का तालिब
आपका भाई

मौहम्‍मद वसीम (वसीम देहलवी)
e-Mail : mwsd75@gmail.com