दिनांक 10 अक्टूबर, 2016
मेरे अज़ीज़ हम वतनों आप सभी को मेरा मुअद्दिबाना सलाम,
आप सभी को
दशहरे की बहुत-2 बधाई। मैं बड़े फ़ख्र के साथ एक बात कहना चाहूँगा कि हमारे मुल्क
में एक तरफ़ तो रामलीलाओं की धूम है तो वहीं दूसरी ओर मजालिसे अज़ादारी मुनअकि़द
हो रही हैं। दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत की याद दिलाता है तो वहीं दूसरी तरफ़
मुहर्रम का दिन भी हमें हक़ की बातिल (बुराई पर अच्छाई) पर जीत की याद
दिलाता है। यह कोई त्यौहार नहीं है लेकिन इस दिन हज़रते इमाम हुसैन (रजि0अ0) की शहादत ने हक़ को
जि़न्दा किया था।
यह एक
इत्तिफा़क़ है कि ये दोनों ऐतिहासिक दिन एक साथ पड़ रहे हैं। जहां एक तरफ शहादत का
बयान, मुहर्रम की
अज़ादारी और शामे ग़रीबा तो वहीं दूसरी तरफ़ रावण दहन एक साथ एक दिन के आगे-पीछे
हो रहा है। एक तरफ 10 मुहर्रम का फ़ाक़ा है तो दूसरी तरफ नवरात्रों के व्रत, ऐसा नज़ारा सिर्फ
हमारे मुल्क में ही मुमकिन है। दुनिया के किसी और मुल्क में आप इस तरह के नज़ारे
नहीं देख सकते हैं।
हम जिस समाज
में रहते हैं यह उसका Advantage है कि हम इस तरह की इन्द्रधनुषी छटा का आनंद ले सकते
हैं और Disadvantage
यह है कि हम आपस में लड़ते रहते हैं। लेकिन एक बात में वाज़ेह
कर देना चाहूँगा कि हम चाहे जितना लड़ते रहें लेकिन दुनिया की कोई ताक़त हमें अलग
नहीं कर सकती है। क्योंकि भाइयों के बीच झगड़ा तो हो सकता है लेकिन एक भाई के
बुरे वक़्त में दूसरा भाई हमेंशा खड़ा होता है ये हमारे संस्कार हैं।
अल्लाह
हाफि़ज़
आपकी दुआओं का तालिब
आपका भाई
मौहम्मद वसीम (वसीम देहलवी)
e-Mail : mwsd75@gmail.com
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