चुनावी घमासान
चुनाव का हो रहा था घमासान
चल रहे थे शब्दों के विषैले बाण
अभद्र भाषा का ख़ूब हुआ आदान-प्रदान
भूलकर सभ्यता दिखे सब एक समान
कीचड़ उछाला सभी ने एक दूसरे पर
प्रतीत हुए सभी एक बालक नादान
हारी मानवता आचार संहिता के आगे
बिना सहायता के ग़रीब पहुँचा शमशान
क्या लोकतंत्र का यही अर्थ है श्रीमान
भुलाकर मान-मर्यादा करो सबका अपमान
(मौहम्मद वसीम)
No comments:
Post a Comment