मौहम्मद वसीम
मत पूछिये वो
और क्या-क्या ढूंढते हैं,
हराम जेब में
लेकिन,.. मन में राम ढूंढते हैं।
बेटे की चाह
रखना ग़लत तो नहीं लेकिन,
क़त्ल बेटी
को करके, .. बेटे का ख़्वाब देखते हैं।
मत पूछिये वो
और क्या-क्या ढूंढते हैं।
शिक्षा का
अधिकार दोनों को है बराबर लेकिन,
बेटा कान्वेन्ट
में, और बेटी राजकीय विद्यालय भेजते हैं।
घरेलू जिम्मेदारियों
का सहायक बेटी में,
और बेटे में
राजकुमार देखते हैं।
मत पूछिये वो
और क्या-क्या ढूंढते हैं।
फसल भी मांगती
है तेरा ख़ून और पसीना,
उपेक्षित बेटी
में क्यों अपनी आकांक्षा ढूंढते हैं?
लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती को तो पूजते हैं लेकिन,
वो बोझ बेटी
को फिर क्यों सोचते हैं?
मत पूछिये वो
और क्या-क्या ढूंढते हैं।
बेटी हैं किरण, सानिया और कल्पना भी,
'दीपा', 'सिंधू' और 'करमाकर' भी हैं बेटी ही,
'वसीम' वो बेटी को फिर क्यों कौसते
हैं?
मत पूछिये वो
और क्या-क्या ढूंढते हैं।
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