मौहम्मद वसीम
राष्ट्र विकास में स्वयं का योगदान
राष्ट्र विकास
में स्वयं के योगदान की बात करने से पहले हमें राष्ट्र को समझना आवश्यक है, कि राष्ट्र क्या
है ? मेरे लिए
मेरा राष्ट्र मेरा घर है। जिसमें पूरा परिवार (भारत के सभी निवासी) मिल-जुल कर रहता है।
अपने राष्ट्र पर मैं बहुत गर्व करता हूँ। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे राष्ट्र का
नागरिक हूँ, जहॉं
विभिन्न धर्म और जातियों के लोग निवास करते हैं। जहॉ सभी ऋतुएं विद्यमान हैं। सभी
धर्मों के त्यौहार यहॉं धूमधाम और बिना किसी भेदभाव के मनाए जाते हैं। जिस देश
में प्राकृतिक व अन्य संसाधनों की भरमार है। मैं धर्म से मुस्लिम हूँ, एक बार मेरे एक
मित्र ने पूछा कि आपके लिए इस्लाम पहले है या राष्ट्र? मैंने विनम्रता के
साथ उत्तर दिया कि ये दोनों मेरे लिए मेरी दो आंखों के समान हैं। और व्यक्ति को
अपनी दोनों आंखें बहुत प्रिय होती हैं। अगर आप किसी व्यक्ति से यह पूछें कि आप
अपनी कौन सी आंख पहले फुड़वाना चाहेंगे? तो उसका क्या उत्तर होगा?
अब मुद्दे पर
आते हैं, 'राष्ट्र विकास
में स्वयं का योगदान', तो स्वाभाविक
रूप से व्यक्ति सोचता है कि मेरे जैसे तुच्छ प्राणी (अदना आदमी) का राष्ट्र विकास
में क्या योगदान हो सकता है? बात दरअसल यह है कि हम केवल अपने अधिकारों की बात करते हैं।
हमेशा उनकी ही मांग करते रहते हैं। जबकि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल
जाते हैं। यदि हम राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी के साथ पालन करें
और उनके प्रति सजग रहें तो हमारे अधिकार हमें स्वत: ही मिल जाएंगे। और राष्ट्र
के विकास में यही हमारा योगदान होगा।
जब भी हम
अपने कर्तव्यों से चूकते हैं या उनका पालन नहीं करते हैं तो हम किसी दूसरे के
अधिकारों का हनन करते हैं। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि राष्ट्र की एकता व
अखंडता तथा न्याय व्यवस्था को बनाये रखने में अपना योगदान दे। यदि हम स्वयं ही
कुछ ऐसा करते हैं जिससे देश की एकता अखण्डता व न्याय व्यवस्था प्रभावित होती
है तो हमारा यह कार्य हमारे राष्ट्र को तोड़ने का काम तो करेगा ही तथा साथ ही
किसी अन्य के अधिकारों का भी हनन करेगा। ऐसे कृत्य राष्ट्र का अहित करते हैं न
कि उसके विकास में सहायता करते हैं।
बच्चों की शिक्षा
राष्ट्र विकास
में यदि हम वास्तव में अपना योगदान देना चाहते हैं तो हमें राष्ट्र के भविष्य
अर्थात् अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वे एक अखण्ड और विकसित भारत की
नींव रखें। वे परस्पर प्रेम, बिना किसी भेदभाव, ऊंच-नीच का विचार करते हुए राष्ट्र की उन्नति और विकास
के प्रति सजग बनें। साम्प्रदायिकता, जातिवाद और अलगाववाद जैसी ताक़तें उनका ब्रेनवॉश करके उन्हें
राष्ट्र विरूद्ध गतिविधियों में लिप्त न कर सकें। उनका इस्तेमाल राष्ट्र
विरोधी गतिविधियों में न कर सकें। हमें न केवल अपने बच्चों को बल्कि दूसरे बच्चों
को भी इस बात की शिक्षा देनी चाहिए। मैं एक उदाहरण देकर समझाता हूँ कि जिस प्रकार
हर मरहम का आधार, बेस तेल है। ठीक
उसी प्रकार प्रत्येक धर्म का आधार 'इंसानियत' है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा कोई भी धर्म
नहीं जिसमें इंसानियत को सर्वोपरी न बताया गया हो। प्रत्येक धर्म मानवता का ही
पाठ पढ़ाता है। हमारा आराध्य एक ही है भले ही हम उसे अलग-2 नामों से क्यों न पुकारते
हों। यदि 'अल्लाह', 'भगवान','जीसस' आदि अलग-अलग होते
तो इंसानों की तरह ये भी आपस में लड़ते। क्या किसी ने इन्हें लड़ते हुए देखा है? सम्भवत: किसी ने
भी नहीं देखा होगा। क्योंकि एक ही सर्वशक्तिमान है जो पूरे संसार को चला रहा है, जिसे हम अलग-अलग
नामों से पुकारते हैं।
जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि
हमारे राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण समस्या है। जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के
लिए विभिन्न सरकारी विभाग और 'फेमिली प्लानिंग ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया' जैसी ग़ैर-सरकारी
संस्थानें इस संबंध में लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं। लेकिन इसका
असर उतना नहीं हो पा रहा है जितना कि होना चाहिए था। इसका कारण है कि ये
विभाग और ग़ैर-सरकारी संस्थान ज़मीनी स्तर पर यह कार्य नहीं कर पाते हैं। ज़मीनी
स्तर पर कार्य तो स्वयं हमें ही करना होगा। यदि हम इस संबंध में लोगों को जागरुक
करें तो राष्ट्र विकास में हमारी एक अहम भूमिका होगी।
जनसंख्या
वृद्धि से संबंधित ही एक प्रश्न यह उठता है कि लागों को जागरुक करके आप जनसंख्या
वृद्धि को आने वाले 10-20 सालों में कण्ट्रोल तो कर सकते हैं लेकिन जो वर्तमान
समय में बढी हुई जनसंख्या है, उसका क्या किया जाए? मेरा अपना यह मानना है कि वह जनसंख्या जो किसी न किसी
उत्पादन कार्य या सेवा कार्य में लगी हुई है, वह राष्ट्र पर बोझ नहीं है। अपितु ऐसी जनसंख्या तो
राष्ट्र के संसाधनों में से है। तथा वह राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में कुछ न
कुछ योगदान दे रही है। लेकिन निकम्मी जनसंख्या जो न तो किसी उत्पादन कार्य या
सेवा कार्य में लगी हुई है बस हनुमान मंदिर, सांई मंदिर या दरगाहों पर बैठकर मुफ़्त का लंगर खा रही
है। ऐसी जनसंख्या न केवल राष्ट्र पर बोझ है बल्कि राष्ट्र की तरक्की में एक रोड़े
के समान है। यदि इस प्रकार की जनसंख्या को कार्य पर लगा दिया जाऐ। तो वह न केवल
राष्ट्र के बोझ से देश की परिसंपत्ति (Asset) में तब्दील हो जाएगी, बल्कि राष्ट्र के
सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ानें में अपना योगदान देगी। इसी को ध्यान में रखते हुए
हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 'स्किल इंडिया' कार्यक्रम चलाया
है। हमें इस प्रकार की सरकारी योजनाओं के बारे में आम और अनपढ़ जनता को अवगत कराना
चाहिए ताकि वे इन योजनाओं का लाभ उठा सकें।
राजस्व
एक ओर तो हम
राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र के विकास में अपने योगदान की बातें करते हैं, और दूसरी ओर जब हम
कोई वस्तु या सामान खरीदते हैं तो उसका पक्का बिल भी नहीं लेते 'कर' बचाते हैं। जिससे
हमारे देश के राजस्व का कितना नुक़सान होता है। हम कभी सोचते भी नहीं हैं। यही
नहीं राजस्व का घाटा तो है ही, हमारा स्वयं का भी
बहुत बड़ा नुक़सान होता है। क्योंकि हमें खरीदी हुई वस्तु की गारण्टी भी नहीं
मिल पाती है। अगर वह वस्तु खराब हो गई तो हो गई। न तो उस कच्चे बिल के आधार पर
हम गारण्टी क्लैम कर सकते हैं और न ही कोई क़ानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।
मैं एक घटना
आपके साथ सांझा करना चाहूँगा। 'कुछ वर्ष पहले हमें कुछ फर्नीचर खरीदने की आवश्यकता हुई। हम
रानी झांसी रोड स्थित 'लिबर्टी
फ़र्नीचर' के शौरूम
में गए। हमने एक कुर्सी पसन्द की जिसका मूल्य 3800/- रूपये था। मोल-भाव करने पर
1500/- रूपये प्रति कुर्सी पर दुकानदार राजी़ हो गया। हमने कहा हमे सभी सामान का
पक्का बिल चाहिए। इस पर उसने कहा कि पक्का बिल लेने पर प्रति कुर्सी 200/- रुपये
अतिरिक्त देने पड़ेंगे। हमने उसे 200/- रूपये 'कर' के अतिरिक्त देना पसन्द किया क्योंकि हम जानते हैं कि
वे 200/- रूपये व्यर्थ नहीं होंगे। हमारे राष्ट्र के विकास में सहायक होंगे।
हमारे देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। मैं स्वयं भी सभी सामान पक्के
बिल पर लेता हूँ और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता हूँ और राष्ट्र के
विकास में छोटा सा योगदान करता हूँ।
संसाधन
बिजली, पानी व अन्य प्राकृतिक
संसाधनों का दुरूपयोग राष्ट्र का अहित करता है। यदि हम राष्ट्र के विकास में
सहायता करना चाहते हैं तो हमें अपने संसाधनों का सदुपयोग करना आवश्यक है। ऐसा
करने से न केवल हमारा अपना आर्थिक लाभ है अपितु हम राष्ट्र के विकास में एक अहम
भूमिका निभा रहे हैं। यदि हम बिजली ही बचाते हैं तो वही बिजली हमारे प्रोडक्शन
यूनिट और इंडस्ट्रीज़ में उपयोग होगी और हमारे राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बढ़ाएगी। और
हमारे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेगी। मैं स्वयं भी बिजली, पानी व अन्य
संसाधनों की स्वयं बचत करता हूँ और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता
हूँ। इस प्रकार राष्ट्र के विकास हेतु अपनी कोशिश पेश करता हूँ।
पर्यावरण सुरक्षा
पर्यावरण की
सुरक्षा हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। हमें देश में इंडस्ट्रीज़ को बढ़ावा भी
देना है और पर्यावरण भी सुरक्षित रखना है। यह हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है। हमें
इंडस्ट्रीज़ भी लगानी हैं लेकिन उनमें वो रद्देअमल अपनाना है कि हमारी इंडस्ट्रीज़
हमारे पर्यावरण के लिए घातक न हों। देश की मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिए प्रोडक्शन
यूनिट भी ज़रूरी हैं और सुरक्षित पर्यावरण भी उतना ही आवश्यक है। इंडस्ट्रीज़ से
निकलने वाले विषैले पानी का शुद्ध करके बाहर भेजा जाए ताकि उससे हमारी नदियां दूषित
न हों। यदि हम पर्यावरण सुरक्षा हेतु क़दम उठाते हैं तो एक मज़बूत राष्ट्र का
निर्माण करते हैं। पर्यावरण सुरक्षा करके हम बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक
विपत्तियों पर भी काफी हद तक जीत हासिल कर सकते हैं।
मैं स्वयं पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्लास्टिक बैग का
प्रयोग बहुत कम करता हूँ। जितना हो सकता है मैं पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रयास करता
हूँ। हरित करण करने हेतु स्वयं प्रयास करता हूँ और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए
प्रेरित करता हूँ।
ईमेज बिल्डिंग
राष्ट्र के
विकास में स्वयं का योगदान देने हेतु सबसे महत्वपूर्ण काम है कि राष्ट्र की एक
अच्छी छवि विश्व के सामने पेश की जाए। आपने एक कहावत सुनी होगी ' बद अच्छा बदनाम
बुरा', यदि हम
बुरे काम करेंगे, अपने शहरों, गांवों और आसपास के
क्षेत्र को गंदा करेंगे, टूरिस्टों/सैलानियों
के साथ दुर्व्यवहार करेंगे तो हमारे साथ-2 हमारे राष्ट्र का नाम भी गन्दा होगा।
जिसका असर हमारे पर्यटन, आयात और
निर्यात कारोबार पर पड़ेगा। जिसका सीधा प्रभाव हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर पड़ेगा।
हमारे माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 'स्वच्छ भारत अभियान' का प्रारम्भ भारत की एक अच्छी छवि बनाने
हेतु ही किया है। साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु भी विभिन्न योजनाएं आरंभ की हैं।
लेकिन ये योजनाएं योजनाएं ही रह जाएंगी जब तक हम लोग स्वयं सरकार का समर्थन न
करें। और अपने देश की ईमेज बिल्डिंग में अपना योगदान न दें।
मैं आपसे
अपना एक अनुभव सांझा करना चाहता हूँ, वर्ष 2013 में मैं सपरिवार छुट्टियां मनाने श्रीनगर गया।
वहां जाने से पहले मेरे मन में कश्मीरियों की छवि अच्छी नहीं थी। कारण आप सभी
जानते हैं वहां पर व्याप्त आतंकवाद, अलगाववाद जिसकी वजह से हम हर एक कश्मीरी को आतंकवादी या
अलगाववादी मान लेते हैं। लेकिन जब हम वहां गए और वहां के आम आदमियों से बातचीत हुई
तो हमने आम कश्मीरी को मधुरभाषी और पर्यटकों के साथ बहुत मैत्रीपूर्ण पाया। मन
में एकाएक विचार कौंधा कि यही वजह है कि जम्मू कश्मीर राज्य में आतंकवाद का
इतना प्रभाव होते हुए भी पर्यटन व्यवसाय में गिरावट क्यों नहीं है।
जिस प्रकार
कश्मीरी अपने राज्य की एक अच्छी छवि पेश करते हैं उसी प्रकार भारत के सभी राज्यों
के नागरिकों को अपने-2 राज्य की एक अच्छी छवि बनानी चाहिए जिससे सम्पूर्ण भारत
की एक अच्छी छवि विश्व के देशों के सामने उभरेगी और हमारे देश का नाम रौशन होगा।
हमारे पर्यटन, आयात और
निर्यात कारोबार में बढोतरी होगी और एक मज़बूत राष्ट्र का निर्माण होगा। मैं स्वयं
यह कोशिश करता हूँ कि मैं कोई ऐसा कार्य न करूं जिससे मेरे राष्ट्र की छवि पर
प्रभाव पड़े। अभी पिछले सप्ताह की बात है मेरे एक दोस्त का 5 साल का बेटा दिल्ली
के एक निजी अस्पताल में कैंसर का ईलाज करा रहा है। संयोगवश एक पाकिस्तानी परिवार
भी अपने किसी छोटे बच्चे के ईलाज के संबंध में वहां मौजूद था। वे लोग दिल्ली मे
नये-2 थे काफी परेशान दिख रहे थे। डाक्टरों की बातें भी ठीक से समझ नहीं पा रहे
थे। तब अस्पताल के एक डाक्टर ने मुझसे कहा कि आप इन्हें समझा दीजिए इन्हें
थोड़ा हौंसला दीजिए। तब मैंने उन्हे ठीक-2 ब्री़फ कर दिया। वो लोग काफी हद तक
संतुष्ट हुए। इस प्रकार मैंने अपने देश की एक अच्छी छवि पेश की। मैं समझता हूँ
कि इस तरह के कार्य दूसरे विदेशी मरीज़ों को भी भारत आकर ईलाज कराने हेतु प्रोत्साहित
करेंगे और हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि होगी। हमारे राष्ट्र के विकास में सहायता
मिलेगी।
अहम बात
मेरा सौभाग्य
है कि मैं एक ऐसी संस्था रा0इ0सू0प्रौ0सं0 से जुड़ा हुआ हूँ, वहां अपनी सेवाएं
देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जो राष्ट्र निर्माण में और राष्ट्र के विकास
में एक अग्रणी भूमिका निभा रही है। मैं और मेरे सभी सहकर्मी और अधिकारी अपने काम
के प्रति ईमानदार और सजग हैं। उन लोगों ने मुझमें भी बहुत सुधार किया है। मैं उन
सभी का आभारी हूँ। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे परिवार का सदस्य हूँ जो राष्ट्र
निर्माण और राष्ट्र के विकास में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है। न केवल भारत
बल्कि विश्व के अन्य देशों के लिए अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से माहिर संव्यावसायिक
(Skilled Professionals) उपलब्ध
करा रहा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री के "Digital India Programme" को सफ़ल बनाने में
एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
आइए हम सभी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने राष्ट्र
के विकास और निर्माण में सहायक बनें।
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